पलायन से वीरान होते पहाड़


जब से उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया है- तब से निरंतर पलायन बढ़ता ही जा रहा है. पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के हजारों गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं. वहीं 400 से अधिक गांव ऐसे हैं- जहां 10 से भी कम नागरिक हैंA विकट भौगोलिक संरचना वाले उत्तराखंड में पलायन बड़ी समस्या के रूप में सामने आया है. आज उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में कठिन जिंदगी से मुक्ति की जिंदगी को पलायन का नाम दिया जाता है इसके साथ साथ कई कारणों में से एक मुख्य कारण शिक्षा का स्तर भी है आज शिक्षा का स्तर पहाड़ों पर उतना अच्छा नहीं माना जाता जितना की शहरों में मानते है या यूँ कहें कि पहले के मुकाबले शहरों में शिक्षा का स्तर बढ़ा है- इसमें निजी विद्यालयों का प्रमुख भागीदारी रही है- दूसरा कारण बेरोजगारी है रोजगार के आभाव में हम लोगो को पहाड़ से दूरी बनाने पर मजबूर कर दिया है- रोजगार की तलाश में युवा एक बार निकल पड़ता है तो पहाड़ की तरफ लौटना असंभव सा लगने लगता है- परंतु इन बातों के साथ साथ मुख्य रूप से पहाड़ की कठिन जिंदगी व सुविधाओं का आभाव भी एक कारण है पलायन आयोग की ओर से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंपी गई रिपोर्ट के अनुसार अकेले अल्मोड़ा जिले में ही 70 हजार लोगों ने पलायन किया है. सूबे की 646 पंचायतों के 16207 लोग स्थाई रूप से अपना गांव छोड़ चुके हैं. पलायन आयोग की रिपोर्ट में 73 फ़ीसदी परिवारों की मासिक आय 500 रुपये से कम बताई गई है. आयोग ने मूलभूत सुविधाओं के अभाव को पलायन की मुख्य वजह बताया है. प्रदेश  में पलायन करने वालों में 42.2 फीसदी 26 से 35 उम्रवर्ग के युवा हैं. रोजगार के साधनों का अभाव युवाओं के पलायन का मुख्य कारण है. रोजगार के नाम पर पहाड़ों पर कुछ भी नहीं है- जिसके कारण युवा रोजी-रोटी की तलाश में बड़े शहरों का रुख करने को विवश हो रहे हैं.


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