पहाड़ों से पलायन: एक अभिशाप


पहाड़ों से पलायन: एक अभिशाप-

पहाड़ों से पलायन कोई बिमारी नहीं बल्कि लोगों की बदलती सोच का परिणाम है। पीछे दो दशकों में पहाड़ के पहाड़ पलायन के कारण सुने पड़े हैं। जहाँ कभी लहलहाते सीढ़ीनुमा खेत पहाड़ों की समृद्धि का परिचय थे, आज बंजर पड़े हैं।

लोग कहते हैं पहाड़ों में रोज़गार नहीं है जो कि एक हद तक सही भी है। पर साथ ही दूसरा पहलू ये भी है कि हमने यहाँ रोजगार पैदा करने के कितने प्रयास किये? क्या हमने खेती के नवीनतम विधियों को अपनाकर उत्पादन बढ़ाने की कोशिश की? क्या पशुपालन में हमारी शान को कोई दाग तो नहीं लग रहा? क्या माता-पिता अपने बेटों से ये अपेक्षा रखते हैं कि वे यहीं पहाड़ में रहकर कोई रोजगार करें? क्या माता-पिता ये नहीं चाहते कि उनकी बेटी किसी शहरी बाबू के घर ब्याह दी जाये?

सच तो ये है कि हम सिर्फ समस्याओं का रोना जानते है पर उनसे रूबरू होकर सामना करने की हिम्मत कुछ ही में है। सरकार से साधन बढ़ाने की माँग करना जायज़ है पर हमें भी तो एक पहल करनी होगी। आप क्या कहते हैं?

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